एक कहानी

धीरे धीरे छोटा बेटे का विश्वास बनता गया

एक कहानी : एक बार एक माता पिता थे वे अपने छोटे पुत्र को जब भी कोई नई बात करता उसे कोई खिलौना दिलाते इससे धीरे धीरे छोटे बेटे का विश्वास बनता गया कि हर नई उपलब्धि से कुछ प्राप्त होता है धीरे धीरे वह हर काम करने से पहले पूछता की पिताजी इससे कुछ मिलेगा उसकी लोभ की वृत्ति बढ़ती गयी।

इसके विपरीत वही माता पिता अपने बड़े बेटे को हर उपलब्धि पर बोलते बेटा इसे संभाल कर रखना कही यह खो ना जाये टूट ना जाये यह छीन ना जाये उनका बड़ा बेटे का यह डर बढ़ता गया अब उसे जो मिलता वो सोचता कही यह खो गया तो इससे इनका बड़ा पुत्र डरपोक बन गया ।

अब आप ही बताए क्या अधिकांश माता पिता ऐसा ही नही करते अब इसके अलावा तीसरा रास्ता क्या यह प्रश्न स्वाभाविक है ? तीसरा रास्ता है विवेक के जागरण का जो लोभ और डर दोनो से परे है।

यही बात हमारे धर्म के विषय मे भी है हमारा धर्म या तो डरपोक या लोभी बना रहा है पर यदि सही मायने में वेद उपनिषद समझे जाए तो वो विवेक के जागरण की बात करते है।

धन्यवाद…..।