दो आदमी यात्रा पर निकले ! दोनों की मुलाकात हुई, दोनों का गंतव्य एक था तो दोनों यात्रा में साथ हो चले !
सात दिन बाद दोनों के अलग होने का समय आया तो एक ने कहा:-भाई साहब ! एक सप्ताह तक हम दोनों साथ रहे क्या आपने मुझे पहचाना ?
दूसरे ने कहा:- नहीं, मैंने तो नहीं पहचाना।
पहला यात्री बोला:- महोदय मैं एक नामी ठग हूँ परन्तु आप तो महाठग हैं। आप मेरे भी गुरू निकले।
दूसरे यात्री बोला “कैसे ?”
पहला यात्री:- कुछ पाने की आशा में मैंने निरंतर सात दिन तक आपकी तलाशी ली, मुझे कुछ भी नहीं मिला। इतनी बड़ी यात्रा पर निकले हैं तो क्या आपके पास कुछ भी नहीं है ? बिल्कुल खाली हाथ हैं।
दूसरा यात्री “मेरे पास एक बहुमूल्य हीरा है और थोड़ी-सी रजत मुद्राएं भी है।
पहला यात्री बोला:-तो फिर इतने प्रयत्न के बावजूद वह मुझे मिले क्यों नहीं ?
दूसरा यात्री “मैं जब भी बाहर जाता – वह हीरा और मुद्राएं तुम्हारी पोटली में रख देता था और तुम सात दिन तक मेरी झोली टटोलते रहे। अपनी पोटली सँभालने की जरूरत ही नहीं समझी – तो फिर तुम्हें कुछ मिलता कहाँ से ?”
यही समस्या हर इंसान की है। आजका इंसान अपने सुख से सुखी नहीं है। दूसरे के सुख से दुखी है क्योंकि निगाह सदैव दूसरे की गठरी पर होती है !!
ईश्वर नित नई खुशियाँ हमारी झोल़ी मे डालता है परन्तु हमें अपनी गठरी पर निगाह डालने की फुर्सत ही नहीं है ! यही सबकी मूलभूत समस्या है। जिस दिन से इंसान दूसरे की ताकझाख बंद कर देगा उस क्षण सारी समस्या का समाधान हो जाऐगा !!
अपनी गठरी टटोलें ! जीवन में सबसे बड़ा गूढ मंत्र है स्वयं को टटोले और जीवन-पथ पर आगे बढ़े सफलताये आप की प्रतीक्षा में है !!.