चित्त का निर्माण तीन गुणों अर्थात सत्त्व, रज व तम से मिलकर हुआ है ।
चित्त का निर्माण तीन गुणों अर्थात सत्त्व, रज व तम से मिलकर हुआ है। इसलिए यह चित्त परिणामी अर्थात परिवर्तनशील होता है । साथ ही यह जड़ पदार्थ है। जड़ पदार्थ का अर्थ है जो स्वयं कुछ भी करने में सक्षम न हो। या जिसकी स्वयं की कोई सत्ता न हो।
जो दूसरे के सहारे ही अपना कार्य करने में समर्थ हो। ऐसे पदार्थ को जड़ कहते हैं। जड़ पदार्थ सदा परिवर्तनशील होता है। क्योंकि वह तीन गुणों से निर्मित होता है। यह तीनों गुण ज्ञान से रहित होते हैं।
अतः इनके द्वारा निर्मित चित्त भी ज्ञान से रहित होता है। जिसके कारण इसे किसी भी पदार्थ का ज्ञान स्वयं नहीं होता । बल्कि आत्मा के द्वारा ही होता है।
इस प्रकार चित्त जड़ पदार्थ हुआ। अब बारी आती है चेतन पदार्थ की। यहाँ आत्मा अथवा पुरुष को चेतन माना गया है। जो सदा अपरिवर्तनशील रहती है इसीलिए आत्मा को अपरिणामी कहा जाता है।
आत्मा इन तीन गुणों से रहित होती है। अर्थात आत्मा का निर्माण इन तीन गुणों से नहीं होता । इसीलिए यह आत्मा परिणाम रहित होती है। आत्मा अथवा पुरुष अपरिणामी होने से ही ज्ञान युक्त होता है।
जो सभी वस्तुओं और पदार्थों को जानने में समर्थ ( योग्य ) होता है।
अब प्रश्न उठता है कि चित्त जड़ पदार्थ होते हुए कैसे कार्य करता है ? इसके उत्तर को हम एक उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं :-
हम सभी के घरों में रोशनी प्रदान करने वाले बल्ब या ट्यूब लाईट अवश्य ही होंगी । क्या आप बिना बिजली के उन बल्ब या ट्यूब लाईटों से रोशनी पैदा कर सकते हो ? आपका उत्तर नहीं में ही होगा ।
लेकिन बिजली होने पर वह ( बल्ब या ट्यूब लाइट ) तुरन्त रोशनी प्रदान करने लगते हैं। बिना किसी प्रकार की देरी किए। इसका अर्थ यह हुआ कि रोशनी बिजली के कारण मिलती है । केवल बल्ब या ट्यूब के सहारे नहीं।
ठीक इसी प्रकार चित्त भी बल्ब या ट्यूब की तरह ही जड़ पदार्थ है जो स्वयं रोशनी अर्थात ज्ञान पैदा नहीं कर सकता। वह बिजली रूपी आत्मा के साथ मिलकर ही ज्ञान रूपी रोशनी पैदा करने में सक्षम होता है।
इसीलिए आत्मा को चित्त का स्वामी कहा है।
यदि आत्मा या पुरुष भी परिणामी होता तो इसे भी चित्त की वृत्तियों का कभी ज्ञान होता और कभी नहीं । लेकिन आत्मा चित्त का स्वामी होता है। इसीलिए उसे चित्त की सभी वृत्तियों अर्थात विषयों का सदा ज्ञान ( जानकारी ) रहती है।
इस प्रकार चित्त जड़ व आत्मा चेतन है । तभी वह आत्मा उस चित्त का स्वामी कहलाता है।